Poem – मकर संक्रांति का आनंद-उत्सव
मकर संक्रांति का आनंद-उत्सव, भरता दिलों में ढेर उमंग
बने पतंग से हल्के, विभिन्न दिव्यगुणों के रंग से सजे
देकर जीवन-डोर प्रभु हाथों में, प्रगति पाए आकाश से ऊँची
पाए सर्वोत्तम खुशियां, प्रभु के संग
(मकर संक्रांति का आनंद-उत्सव, भरता दिलों में ढेर उमंग)
तिल देती आत्मिक स्वरूप की स्मृति, बनाती हमे गुड़ सा मीठा
देकर दुःखों की ठंडी को विदाई, ले गर्म आशाओं की बधाई
सबके जीवन में आये नई तरंग
(मकर संक्रांति का आनंद-उत्सव, भरता दिलों में ढेर उमंग)
देकर कमजोरीयों को ढ़ील, खिंचे दृढ़ संकल्पों की tichki
जोड़के प्रभु से प्रित, अनुभव करे प्रभु-प्रेम की हवाए
भरे जीवन में दिव्यता के रंग
(मकर संक्रांति का आनंद-उत्सव, भरता दिलों में ढेर उमंग)
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